यह व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इस वर्ष यह व्रत २४ जनवरी दिन गुरूवार ( Thursday ) को किया जाएगा।
सकट चौथ व्रत का महात्म्यः
सकट चौथ के दिन भालचंद्र गणेश भगवान की पूजा की जाती है। इस व्रत को सुहागिन स्त्रियां अपनी संतान की दीर्घ आयु और सफलता के लिए करती हैं। इस दिन सभी स्त्रियाँ निर्जल व्रत रखती हैं और शाम को भगवान गणेश की पूजा के बाद चन्द्रमा को अर्घ देकर भोजन ग्रहण करती हैं।
सकट चौथ पूजन विधि (Sakat Chauth Poojan Vidhi)
सर्वप्रथम प्रातः क्रिया से निवृत होकर भगवान गणेश तथा चन्द्रमा का ध्यान करें। इसके बाद चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उसपर भगवान गणेश की प्रतिमा रखें, चौकी पर एक कलश में जल भरकर रखें। इसके बाद भगवान को पुष्प अर्पित करें, और धुप – दीप जलाकर भगवान् की स्तुति करें। भगवान को तिल और गुड़ का भोग लगाकर सभी को प्रसाद वितरित करें। निम्न श्लोक को पड़कर भगवान की स्तुति करें।
गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारु भक्षणम ।
उमासुतं शोक विनाशकारकम, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम ।।
सकट चौथ व्रत कथा (Sakat Chauth Vrat Katha)
एक शहर में एक साहूकार और एक साहूकारनी रहते थे। परन्तु वे धर्म और पूजा – पाठ को नहीं मानते थे। एक दिन साहूकारनी अपनी पड़ोसन के घर गई, पड़ोसन सकट चौथ की पूजा करके कहानी सुन रही थी। यह देख साहूकारनी ने पड़ोसन से पूछा – ” बहन तुम यह क्या कर रही हो “? तब पड़ोसन बोली की आज सकट चौथ है, इसलिए मैं कहानी सुन रही हूँ। यह सुनकर साहूकारनी ने पूछा कि सकट चौथ का व्रत करने से क्या होता है? तुम यह व्रत क्यों कर रही हो? तब पड़ोसन ने कहा कि इस व्रत को करने से अन्न, धन, सुहाग तथा पुत्र की प्राप्ति होती है। यह सुनकर साहूकारनी बोली कि यदि मेरा गर्भ रह जाएगा तो मैं सवा सेर तिलकूट करूंगी और चौथ का व्रत भी करूंगी। भगवान गणेश की कृपा से साहूकारनी का गर्भ ठहर गया। अब साहूकारनी बोली कि यदि मेरे लड़का होगा तो मैं ढाई सेर तिलकूट करूंगी। कुछ समय बाद साहूकारनी के लड़का भी हो गया। कुछ समय बाद साहूकारनी ने फिर कहा कि “हे चौथ भगवान यदि मेरे बेटे का विवाह हो जाएगा तो मैं सवा पांच सेर का तिल कूट करूंगी”। कुछ समय बाद साहूकारनी के बेटे का विवाह भी तय हो गया लेकिन साहूकारनी ने अब भी तिलकूट नहीं किया जिससे चौथ भगवान क्रोधित हो गए और फेरों के समय साहूकारनी के बेटे को उठाकर पीपल के पेड़ पर बिठा दिया। सभी वर को खोजने लगे लेकिन वर के न मिलाने पर सभी अपने – अपने घर लौट गए।
उधर जिस लड़की से साहूकारनी के बेटे का विवाह होने वाला था, वह लड़की अपनी सहेलियों के साथ गणगौर पूजन के लिए जंगल में दूब लेने गयी। तब रस्ते में पीपल के पेड़ से आवाज आयी -“आ मेरी अर्द्धव्याही” यह बात सुनकर जब लड़की अपने घर आयी तो वह धीरे – धीरे कमजोर होने लगी। यह देखकर उसकी माँ ने कहा – “कि तू इतनी कमजोर क्यों होती जा रही है, तेरे मन में क्या है तू बता? तब लड़की ने अपने माँ से कहा कि – “जब भी मैं दूब लेने जंगल में जाती हूँ, तो पीपल के पेड़ से एक आदमी बोलता है, “आ मेरी अर्द्धव्याही” उस लडके के मेंहदी लगी हुई है, सेहरा बंधा हुआ है।
तब उस लड़की की माँ ने पीपल के पेड़ के पास जाकर देखा कि यह तो मेरा जमाई है। तब उस लड़की की माँ ने अपने जमाई से कहा – “तुम यहाँ क्यों बैठे हो”? तुमने मेरी बेटी तो अर्द्धव्याही कर दी अब क्या लोगे”? यह सुनकर साहूकारनी का बेटा बोला कि – “मेरी माँ ने चौथ भगवान का तिलकूट बोला था, लेकिन किया नहीं इसलिए चौथ भगवान ने क्रोधित होकर मुझे यहाँ बैठा दिया है”। यह सुनकर उस लड़की की माँ साहूकारनी के घर गयी और उससे पूछा कि क्या तुमने सकट चौथ का कुछ बोला था? तब साहूकारनी को याद आया कि “मैंने तिलकूट बोला” था। उसके बाद साहूकारनी ने चौथ भगवान से क्षमा माँगी कि यदि मेरा बेटा आ जाएगा तो मैं ढाई मन का तिलकूट करूंगी। इससे भगवान गणेश प्रसन्न हो गए। और साहूकारनी के बेटे को फेरों पर लाकर बैठा दिया।
साहूकारनी के बेटे का विवाह बड़ी धूम – धाम से हुआ। जब साहूकारनी का बेटा और बहू घर आ गए तब साहूकारनी ने ढाई मन का तिलकूट किया और और चौथ भगवान से बोली – हे चौथ भगवान आपके आशीर्वाद से मेरे बेटे और बहू घर आये हैं, इसलिए मैं हमेशा तिलकूट करके आपका व्रत पूजन पूरे विधि- विधान से करूंगी।