सोमवार का व्रत भगवान शिव का व्रत होता है। भगवान शिव बहुत ही भोले – भाले हैं, जो अपने भक्तों की पूजा – अर्चना से अतिशीघ्र प्रसन्न होते हैं। इसलिए भगवान शिव को भोलेनाथ, भोलेबाबा के नाम से भी पुकारा जाता है। भगवान शिव के तीन नेत्र हैं, इसलिए इन्हें त्रि – नेत्रधारी भी कहते हैं।
पूजन विधि
सोमवार के व्रत में प्रातः क्रिया से निवृत होकर भगवान शिव का दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। भगवान शिव को चन्दन का तिलक लगाकर अक्षत और बेलपत्र अर्पित करें। भगवान शिव के अभिषेक के बाद कथा सुनें तथा आरती करके प्रसाद वितरित करें।
व्रत कथा
एक शहर में बहुत धनी सेठ रहता था, उसके पास धन – वैभव की कोई भी कमी नहीं थी। परन्तु उसके कोई संतान न होने पर वह बहुत ही दुःखी रहता था। वह इस बात से बहुत ही दुःखी और चिंतित रहता था। वह पुत्र प्राप्ति के लिए सोमवार को शिवजी का व्रत और पूजन करता था। तथा सांयकाल को भगवान् शिव के मंदिर में जाकर धुप – दीप जलाता था। उसकी इस भक्ति से प्रसन्न होकर एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु ! यह सेठ बहुत ही श्रद्धा पूर्वक आपका व्रत और पूजन करता है, इसलिए आपको इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए। यह सुनकर भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि यह संसार कर्म क्षेत्र है, जो जैसे बीज बोयेगा वैसा ही फल उसको मिलेगा। परन्तु माता पार्वती के बारबार आग्रह करने पर भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती ! इसके भाग्य में पुत्र नहीं है, तब भी मैं इसको पुत्र की प्राप्ति का वर देता हूँ। लेकिन वह पुत्र केवल 11 वर्ष तक ही जीवित रहेगा, उसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त होगा। यह सभी बातें सेठ ने सुन ली, इसलिए उसे यह सुनकर न दुःख हुआ और न ही अधिक खुशी हुई। वह पहले की तरह ही भगवान की पूजा और भक्ति में लगा रहा। कुछ समय बाद सेठ की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके गर्भ से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। सेठ के घर में बहुत खुशी मनायी गई, परन्तु सेठ ने अधिक प्रसन्नता प्रकट नहीं की और न ही किसी को यह भेद बताया कि उसके पुत्र की उम्र सिर्फ 11 वर्ष है। जब सेठ के लड़के की उम्र 10 वर्ष हुई तो उस बालक की माँ ने उस बालक के पिता से बालक के विवाह के लिए कहा। लेकिन सेठ कहने लगा कि मैं अभी इसका विवाह नहीं करूंगा, पहले इसे काशी पढ़ने के लिए भेजूंगा। सेठ ने बालक के मामा को बहुत सारा धन देकर कहा कि तुम इसे काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जहाँ भी जाओ यज्ञ करते, ब्राह्मणों को भोजन कराते जाना। वह दोनों मामा और भांजे सब जगह यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे।
रास्ते में एक शहर पड़ा, उस शहर के राजा की कन्या का विवाह था। तथा दूसरे राजा का लड़का जो बरात लेकर आया था वह एक आँख से काना था। लडके के पिता को इस बात की बहुतचिंता हुई कि कहें वर को देखकर कन्या के माता – पिता विवाह से मना न कर दें। परन्तु जब उसने अति – सुन्दर सेठ के लडके को देखा तो विचार किया क्यों न इसी लडके से वर का काम लिया जाए। ऐसा सोचकर राजा ने लडके तथा उसके मामा से कहा तो वह राजी हो गए। तब सेठ के लडके को स्नान आदि कराके वर के कपडे पहनाकर राजा के यहाँ ले गए। अब राजा ने सोचा क्यों न विवाह कार्य भी इसी लडके से करा दें तो क्या बुराई है। ऐसा सोचकर राजा ने लडके और उसके मामा से कहा कि यदि आप फेरों और कन्यादान का काम भी करा देंगे तो में आपको इसके बदले बहुत सा धन दूंगा। उन्होंने यह स्वीकार कर लिया और विवाह का काम भी संपन्न हो गया। लेकिन जब लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुनरी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है, लेकिन जिस राजकुमार के साथ तुम्हें भेजेंगे वह एक आँख से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूँ। यह देखकर राजकुमारी ने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया। राजकुमारी के माता पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गयी।
उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुँच गए। वहां जाकर उन्होंने यज्ञ आदि करना शुरू कर दिया और लडके ने पढना शुरू कर दिया। जब लड़के की आयु 11 वर्ष हुई तब उस दिन उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया था, उसी समय लडके ने अपने मामा से कहा कि आज मेरी तबियत कुछ ठीक नहीं है। यह सुनकर मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर सो जाओ। लड़का अंदर जाकर सो गया और सोते ही उसके प्राण निकल गए। जब उसके मामा ने अंदर जाकर देखा तो उसे बहुत दुःख हुआ, लेकिन उसने सच्चा कि यदि मैं अभी रोना – पीटना शुरू करदूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। अतः उसने शीघ्र ही यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के घर जाने के पश्चात रोना – पीटना शुरू कर दिया। संयोगवश उसी समय भगवान शंकर और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। जब माता पार्वती ने जोर -जोर से रोने की आवाज सुनी तो वह शिवजी को आग्रह करके उसके पास ले गयी। माता पार्वती ने लडके को देखा कर कहा कि हे महाराज ! यह तो उसी सेठ का लड़का है, जो आपके वरदान से पैदा हुआ था। यह सुनकर भगवान शिव बोले ! हे देवी इसकी आयु इतनी ही थी सो यह भोग चुका। माता पार्वती के बार – बार आग्रह करने पर भगवान शंकर ने उसको वरदान दिया और लड़का फिर से जीवित हो गया। भगवान शंकर और माता पार्वती कैलाश चले गए।
लड़का और उसका मामा उसी प्रकार यज्ञ करते हुए अपने घर की ओर चल पड़े। जब वह उसी शहर में आये जहाँ पर उस लडके का विवाह हुआ था। वहाँ पहुँच कर जब उन्होंने यज्ञ आरम्भ किया तो राजकुमारी के पिता ने उसे पहचान लिया और अपने महल में लाकर बहुत ही खातिरदारी की तथा बहुत सारे धन ओर दासियों के साथ अपनी लड़की और जमाई को विदा किया। जब लड़का अपने शहर के निकट आया तो सेठ ने बड़ी ही प्रसन्नता से उसका स्वागत किया।इसी प्रकार जो भी सोमवार का व्रत रखकर इस कथा को सुनता अथवा पढ़ता है। भगवान शिव उसके सभी दुःखों को दूर करके सभी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।